" ... यह अनुभव हो चुका था कि चम्पारण में महिलाएँ जितना परदा करती हैं उसमें उनके बीच बिना महिला कार्यकर्ता के काम करना मुश्किल होगा। और गांधी तब तक कस्तूरबा को काम पर लगा चुके थे। सफाई तथा स्वास्थ्य के मामलों में महिलाओं को ज्यादा मदद की जरूरत है। पर तब तक कस्तूरबा ने साझा रसोई का पूरा जिम्मा अपने ऊपर ले लिया और सभी कार्यकर्ताओं का खाना-पीना एक साथ शुरू हुआ। इससे तत्काल छुआछूत और जाति-धर्म के दिखावटी भेद मिटने लगे। औरत के समाजिक काम की हिस्सेदारी का प्रत्यक अनुभव गांधी के सभी सहयोगियों और चम्पारण के लोगों को हुआ। ..."
चम्पारण सत्याग्रह के सहयोगी
अरविन्द मोहन
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